रायपुर।(रमेश तिवारी ‘रिपु’) नक्सली मारे जाते हैं तो सरकार और पुलिस अपनी पीठ थपथपाने लगती है। और यह सिलसिला पिछले दो दशक से चला आ रहा है। चार अक्टूबर को 36 नक्सली मारे गए थे। सरकार दावा करने लगे कि नक्सलवाद खात्मे के कगार पर है। यह सियासी बयान बंद होने चाहिए। छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद को खत्म करने के लिए कई योजनाएं बनी। लेकिन नक्सलवाद जड़ से खत्म नहीं हुआ। पिछले 23 सालों में देश के अंदर तेरह हज़ार से अधिक जवान शहीद हुए। छत्तीसगढ़ में दण्डकारण्य राज्य के लिए मुठभेड़ में करीब बारह सौ माओवादी मारे गए। लाशें दोनों तरफ से गिनी जा रही है। फिर लोकतंत्र की पसली से नक्सलवाद का मवाद बहना बंद क्यों नहीं हो रहा,इस ओर हुक्मरानों को सोचना चाहिए।
ऐसी शहादत कब तक
नारायणपुर जिले में नक्सलियों द्वारा बिछाई गई एक बारूदी सुरंग में विस्फोट होने से आईटीबीपी के जवान अमर पंवार और के राजेश शहीद हो गए थे। दो पुलिसकर्मी घायल भी हुए थे। शहीद हुए जवान 53वीं बटालियन के थे। शहीद जवान श्री अमर पंवार महाराष्ट्र के सतारा और श्री के राजेश आंध्र प्रदेश के कडप्पा के रहने वाले थे। उनके पार्थिव शरीर को विशेष विमान से उनके पैतृक स्थानों पर ले जाया गया है।
मवाद की तरह बह रहा नक्सलवाद
सरकार को बहुत खुश नहीं होना चाहिए कि हमारे जवानों ने दंतेवाड़ा और नारायणपुर की सीमा पर थुलथुली में 36 नक्सलियों को ढेर कर दिया। क्यों कि माओवादियों ने बगावत के इतिहास में पहली बार दंतेवाड़ा में सन् 2010 में सीआरपीएफ के 76 जवानों की लगभग पूरी कंपनी को ही खत्म कर दिया था। फिर भी इनके लिए नरम शब्द का उपयोग हैरानी वाली बात है। हैरानी वाली बात है जब रायपुर में कांग्रेस नेता राजब्बर कहते हैं कि नक्सलियों को रोको नहीं ये क्रांति के लिए निकले हैं,तब भूपेश बघेल ने चुप्पी साध ली थी। ये ऐसे बयान हैं,जो नक्सलियों का हौसला आफ़जाई करते हैं। नक्सलवाद के लिए सियासी दलों के बयान खाद और पानी हैं। यही वजह है कि, नक्सलवाद लोकतंत्र की शिराओं में मवाद की तरह बह रहा है। नक्सली कौन सी क्रांति के लिए निकले हैं ये बात कांग्रेसियों को बतानी चाहिए। मध्यप्रदेश में पूर्व गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा कहते हैं दिग्विजय सिंह की वजह से अविभाजित मध्यप्रदेश में नक्सलवाद बढ़ा है।
नक्सलवाद अपाहिज नहीं होगा
दंतेवाड़ा के शाहुल हमीद कहते हैं,‘‘बस्तर में ज़्यादातर कारखाने और खदानें उद्योगपतियों को दिये जाने का विरोध स्थानीय लोग करते आए हैं। छत्तीसगढ़ सरकार ने एस्सार स्टील परियोजना के लिए 1500 एकड़ जमीन मंजूर की,गाँवों वालों ने इसका विरोध किया। पोलावरम पर बांध बनाने का भी विरोध हो रहा है। सीआरपीएफ का कैंप खोले जाने का विरोध बरसों से हो रहा है, पर सरकार कहांँ मानने वाली। सरकार को चाहिए,कि स्थानीय लोगों को भागीदार बनाए। सामाजिक एवं आर्थिक अधिकारों से वंचित लोगों को जब तक सरकार विश्वास में नहीं लेगी और उनकी प्राथमिकताओं को तरजीह नहीं देगी,नक्सलवाद अपाहिज नहीं होगा।’’
माकपा नेता मनीष कुंजाम कहते हैं,‘‘छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद से राज्य में नक्सलवाद और बढ़ता गया। आदिवासियों को संविधान की 6वीं अनुसूची के अधिकार मिल जाए, तो माओवाद की समस्या नहीं रहेगी। सरकार कारपोरेट घराने के इशारे पर फोर्स के बल का इस्तेमाल कर रही है। माओवादी नहीं चाहते, कि जल,जंगल और जमीन,पर, कारपोरेट घराने का अधिकार हो। सरकार कहती है,कि माओवादी का खात्मा करीब है। जबकि सच्चाई यह है कि, यहाँ का आदिवासी माओवादियों के आगे बेबस है। जन अदालत लगाकर जिस तरह माओवादी सजा मुकर्रर कर देते हैं,उस पर सरकार और पुलिस दोनों रोक नहीं लगा सकी। सरकार ने भी भटके लोगों से वार्ता करने की बजाए दूरियांँ बना ली।
मौत की संख्या बढ़ती जाएगी
पूर्व केन्द्रीय मंत्री जयराम रमेश माओवादी उग्रवाद के संदर्भ में अलग सोचते हैं। उनकी सोच कांग्रेस नेता राजबब्बर से अलग है। वे कहते हैं,माओवादियों को लेकर रूमानी नहीं होना चाहिए। वे आतंकवादी हैं। वो सिर्फ आतंक फैलाते हैं। आप उनसे नरमी नहीं बरत सकते। राज्य में होने वाली नक्सली हत्याएं इस बात का संकेत है,कि माओवादियों के साथ कड़ा बर्ताव जरूरी है। नक्सलियों का मारा जाना भी चिंता का विषय है। जरूरी है कि उनसे बातचीत की पहल की जाए। इसलिए नक्सली हर वारदात के बाद बदला लेने की योजना बनाते हैं। अपने गुस्सा गांवों में रह रहे ग्रामीणों पर उतारते हैं। इस परंपरा पर रोक लगनी चाहिए। अन्यथा मौत की संख्या बढ़ती जाएगी।