रांचाी28 अक्टूबर। झारखंड में इस बार भी किसी भी पार्टी को बहुमत मिलेगा इसकी संभावना कम दिख रही है। जो पार्टी मार्जिन वाली सीट पर कब्जा कर लेगी उसी पार्टी की सरकार बन जाएगी। झारखंड में नौ ऐसी सीटें हैं जहां हमेशा हार -जीत का अंतर बहुत कम ही रहता है। सियासी बाजी पलटने के आसार ज्यादा हैं। वैसे सभी पार्टियों ने जाति के आधार पर प्रत्याशी खड़े किये हैं।
बीजेपी का कब्जा रहा
जब से झारखंड राज्य बना है। यहां एक चीज कामन कही जा रही है किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। इस बार भी इसके आसार ज्यादा है। देखा जाए तो पिछली बार झारखं डमें नौ ऐसी सीटें थी जो कम माजिन पर हार जीत का फैसला की थी। और ऐसी सीटों पर बीजेपी का कब्जा रहा।
हेमंत को रणनीति बदलनी पड़ेगी
जिन 9 सीटों पर जीत का अंतर कम रहा है वो इस प्रकार हैं. देवघर, गोड्डा, कोडरमा,मांडू,बाघमारा, जरमुंडी, सिमडेगा,, नाला और जामा। पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने यहां 5 सीटें जीती थीं। जेएमएम और कांग्रेस के खाते में 2 सीटें गई थीं। बड़ी बात यह है कि इस बार लोकसभा चुनाव में बीजेपी विधानसभा की 9 में से 8 सीटों पर आगे रही। ऐसे में सीएम हेमंत सोरेन को अपनी रणनीति बदलनी पड़ेगी।
झारखंड में पिछले विधानसभा चुनाव की बात करें तो इन 9 सीटों पर औसत जीत का मार्जिन सिर्फ 2349 वोट रहा था। वहां भी सिमडेगा में तो हार जीत का फैसला 285 वोटों से हुआ। वही उन 9 सीटों में से 4 सीटें ऐसी भी सामने आईं जहां पर बीजेपी दूसरे पायदान पर रही। अगर थोड़ा और समीकरण बदलता तो पार्टी जीत भी दर्ज कर सकती थी। 2019 के चुनाव में 14 ऐसी सीटें भी सामने आई थीं। जहां पर जीत का अंतर 5000 वोटों से कम का था। यहां जेएमएम ने पांच सीटें जीती थीं। कांग्रेस के खाते में भी तीन गईं। बीजेपी को सिर्फ पांच मिल पाईं और सत्ता से वो दूर हो गई।चुनावी इतिहास की बात करें तो सन् 2014 में इन्हीं सीटों पर बीजेपी का पलड़ा भारी था। सवाल यह है कि क्या इस बार बीजेपी अपने को दोहरा पाएगी। क्यों कि 2014 में इन 19 सीटों पर जीत का अंतर 2100 वोट रहा था। बीजेपी ने सात सीटें अपने नाम की थीं। तब जेएमएम, कांग्रेस, एनएसएम को एक एक सीट सें संतोष करना पड़ा था। जाहिर सी बात है कि सारा खेल मार्जिन वाली सीट का है।