मुंबई।(रमेश तिवारी‘रिपु’) लोकतंत्र में राजनीति कैसी होनी चाहिए। सन् 2014 के बाद विपक्ष को पता चला। महाराष्ट्र में राजनीति करने वाले जो लोग कल तक बीजेपी के साथ थे,उन्हें लगा कि सत्ता की खीर बीजेपी के साथ बांटकर क्यों खाएं? और उन्होंने उनके साथ मिलकर सरकार बना ली, जिनसे उनका कभी दांत काटे का रिश्ता भी न था। ऐसे में गुजरात लाॅबी कब तक शांत बैठती। उसने ऐसा खेल किया कि शिवसेना के पुरोधा बने उद्धव ठाकरे कहीं के नहीं रह गए। उनकी सरकार चली गयी। और एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बना दिये गए। अब उसी शिंद के जरिए शरद पवार गुजरात लाॅबी पर सियासी वाॅर करने की सबसे बड़ा दांव चल दिया है।
दस बार सोचेंगे
गुजरात लाॅबी एकनाथ शिंदे के जरिए उद्धव ठाकरे को गच्चा देना चाहते थे। उसमें कामयाब हो गए। उन्हें लगा शिंदे उद्धव ठाकरे की सरकार गिरा सकते हैं तो उद्धव की शिवसेना,एनसीपी,और कांग्रेस को भी समझ लेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। लोकसभा के परिणाम से पता चल गया कि एकनाथ शिंदे के दम पर बीजेपी महाराष्ट्र में सरकार नहीं बना सकती। इसलिए गुजरात लाॅबी ने शिंदे को भाव देना बंद किया। शिंदे अपनी सियासी परछायी को कम होता नहीं देखना चाहते। इसके लिए उन्होंने महाराष्ट्र के वरिष्ठ नेता शरद पवार से सलाह ली। शरद पवार जो चाल चलने का रास्ता बताया उससे अमितशाह के कान खड़े हो गए हैं। शिंदे विधान सभा की 288 सीट में 120 सीट की मांग कर दी। शिंदे जानते हैं यदि मैं जीत भी गया तो अमितशाह मुख्यमंत्री बनाएंगे नहीं। और हार गया तो भी। ऐसे में यदि मंै संख्या बल में ज्यादा रहा तो अमिततशाह की मजबूरी रहेगी मुख्यमंत्री बनाना। और नहीं बनाया तो तस्वीर बदलने की कूवत रहेगी तो चाणक्य खिलाफत की राजनीति करने से पहले दस बार सोचेंगे।
बीजेपी को हटाना चाहते हैं पवार
शरद पवार ने शिंदे को जो सलाह दी उससे एक बात साफ है कि गुजरात लाॅबी की इससे परेशानी बढ़ गयी है। गुजरात लाॅबी भी समझ रही है कि यदि शिंदे की बात मान ली तो महाराष्ट्र में बीजेपी संख्या बल में एक जगह आकर ठिठक जाएगी। और ऐसा हो गुजरात लाॅबी कभी चाहेगी नहीं। महाराष्ट्र से पवार शिंदे को नहीं, बीजेपी केा हटाना चाहते हैं। वे समझ रहे हैं कि यदि शिंदे संख्या बल में ठीक ठाक रहे और किसी कारण वश मुख्यमंत्री नहंी बनाए गए तो वो इंडिया गठबंधन को समर्थन कर बीजेपी को सत्ता से बाहर कर सकते हैं। शिंदे का अपना तर्क है कि उद्धव ठाकरे मेरी वजह से सत्ता से बाहर हुए तो मेरी सुनना ही पड़ेगा। वैसे भी महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद कहा जाने लगा कि बीजेपी यहां दोबारा नहीं आएगी। लोकसभा में बीजेपी को नौ सीट,अजीत पवार की पार्टी एनसीपी को एक सीट और शिंदे की शिवसेना को सात सीट मिली थी। तीस सीट इंडिया गठबंधन को। चुनाव से पहले शिंदे ने सियासी फिजा बदल दी। मुख्यमंत्री लाड़ली बहना योजना के जरिए।
गुजरात लाॅबी को शह
राज्य में पहले 80 लाख महिलाओं को मुख्यमंत्री लाड़ली बहना योजना का लाभ दिया गया। इसके बाद एक करोड़ लोगों को। राज्य में तीन करोड़ 59 लाख 38 हजार जनधन खातेदार हैं। इन सबको मुख्यमंत्री लाड़ली बहना योजना का लाभ मिलना है। इसलिए बैकों में सभी का खाता आधार कार्ड से लिंक करने का आदेश दियाा गया है। मुख्यमंत्री लाड़ली बहना मुफ्त योजना है। और शिंदे सरकार ने इसी के दम पर महिलाओं के थोक में वोट पाना चाहती है। यह चमत्कार मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में हो चुका है। इस योजना से राज्य सरकार को हर माह 45 हजार करोड़ का भार पड़ेगा।गुजरात लाॅबी से शरद पवार अपना बदला लेना चाहते हैं। अजीत पवार के जरिए उनकी पार्टी एनसीपी का सफाया किया था। अब वे शिंदे को मोहरा बनाकर गुजरात लाॅबी को शह देना चाहते है। शिंदे कई बार शरद पवार से मिल चुके हैं। उनसे सियासी सलाह ले चुके हैं। जबकि वो उनसे फोन पर भी बातें कर सकते हैं,लेकिन उन्हांेने फोन टेप से बचने मिलना ज्यादा बेहतर समझा।
ऐसा है सियासी ट्रेंड
लोकसभा चुनाव के परिणाम से जो तस्वीर उभरी उसमें बीजेपी दोबारा नहीं लौटेगी। यही कहा जाने लगा। लेकिन हरियाणा के चुनाव परिणाम से गुजरात लाॅबी यह मानकर चल रही है कि कुछ भी हो सकता है। मुख्यमंत्री लाड़ली बहना योजना शिंदे सरकार के पक्ष में हवा बना दी है। कल तक 36 जिले की विधान सभा की 288 सीट में 63 सीट पर कांग्रेस लीड पर थी। उद्धव ठाकरे की शिवसेना 57 और अजीत की एनसीपी 34 सीट। मौजूदा समय में बीजेपी 102 सीट पर है। शिवसेना शिंदे 38,एनसीपी 40 निर्दलीय 14 और अन्य पार्टी के आठ विधायक है। वहीं कांग्रेस 37,शिवसेना उद्धव गुट 16 और शरद की एनसीपी 12 विधायक हैं। महाराष्ट्र में शिंदे की शिवसेना और दूसरी तरफ उद्धव की शिवसेना के बीच लड़ाई है। शरद पवार इन दोनों की लड़ाई के बीच का फायदा उठाना चाहते हैं। अपनी बेटी सुप्रिया को महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं। देर सबेर यदि शिंदे की बात गुजरात लाॅबी नहीं मानी तो बीजेपी के कई विधायक शरद पवार की पार्टी से चुनाव लड़ सकते हैं। शिंदे यही चाहते हैं। शिंदे को गुजरात लाॅबी ने दो टुक कह दिया है कि जिन्हें टिकट देने की वकालत कर रहे हो उन्हें टिकट नहीं दी जाएगी। चेहरे बदलो। शिंदे किसी को नाराज करके अपने विरोध की खाई बढ़ाना नहीं चाहते। इंडिया गठबंधन में भी आल इज वेल नहीं है। सपा सुप्रीमों अखिलेश भी महाराष्ट्र में सीट मांग रहे हैं। कांग्रेस उद्धव को ज्यादा सीट देना नहीं चाहती। शरद पवार महाराष्ट्र की सियासत का सरदार बनने की फिराक में हैं। देखते हैं सीट शेयरिंग का घमासान नई सियासी कूटनीति की कैसी तस्वीर बनाती है।